Friday, October 16, 2020

कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना

 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के सौ वर्ष.

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             अक्टूबर17,सन् 1920 भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण दिन है।इसी दिन तासकंद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई।जुलाई 1920 में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की दूसरी कान्फ्रेंस का अवसर था।दुनियां के कम्युनिस्ट प्रतिनिधि इसमें भाग लेने सोवियत यूनियन पहुंचे थे।इस कांफ्रेंस में दो भारतीय भी भाग ले रहे थे।पहले, जो मैक्सिको की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिनिधि के तौर पर भाग ले रहे थे,का.एम.एन. राय थे,जो अपना नाम बदल कर इसी नाम से चर्चित हुए थे,दूसरे साथी अवनी मुखर्जी रहे, जो इग्लैंड से माइग्रेट होकर जर्मनी की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे।इसी अवधि में भारत के कई हिस्सों से लगभग 200 मुहाजिर भी सोवियत यूनियन में बने रहे।यह मुहाजिर सोवियत यूनियन की क्रांति में भाग लेने पहुंचे थे,क्रांति की सफलता के बाद भी यह सब वहीं रूके थे।इनमें सें 30ऐसे रहे जो दूसरी इंटरनेशनल के समय भी वहीं मौजूद रहे।इनमें 21तो ऐसे भी थे जिन्हें मास्को में मार्क्सवादी शिक्षा भी दी जा चुकी थी।

            जब 17 अक्टूबर 1920 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना तासकंद में हो रही थी,उस समय एम.एन.राय,अवनी मुखर्जी ,आचार्य पीरूमल,राजा महेंद्र प्रताप के साथ मुहाजिरों का वह ग्रुप जिसमें साथीगण  मोहम्मद सफीक,फिरोजुद्दीन मंसूर, अब्दुल मजीद, रफीक अहमद,सौकत उस्मानी, फजल इलाही कुर्बान, अब्दुल वारिस, अकबर शाह आदि सम्मिलित थे,उपस्थित रहा।साथी मोहम्मद सफीक को उस समय पार्टी का मंत्री चुना गया।भारत के लिए एक कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना भी की गयी।

        दर असल उस दौर में सोवियत क्रांति ने सारी दुनियां का ध्यान अपनी ओर खींचा था।वैसे तो क्रांतियां इससे पहले भी हुई थी पर शोषण परक व्यवस्था सबके बाद ज्यों की त्यों बनी रह गयी थी।यह सोवियत क्रांति ही थी जिसने मनुष्य के द्वारा मनुष्य और किसी देश के द्वारा किसी देश के शोषण के खात्मे की बात की,बात ही नहीं की वरन उस दिशा में काम करते हुए कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की स्थापना भी की,जो समूची दुनियां से शोषणपरक व्यवस्था को उखाड़ फेकने के लिए काम कर रही थी।हर देश के लिए कम्युनिस्ट ग्रुपों के निर्माण भी हुए।भारत के लिए एम.एन.राय सहित यह ग्रुप सर्वप्रथम सामने प्रकाश में आया।

            इसी समूह से प्रभावित होकर भारत के अलग-अलग भागों में काम करने वाले लोग भी निकले जिनका मार्गदर्शन तासकंद समूह के लोगों का मिला था।खुद 1922 में मास्को से लौटने के बाद सौकत उस्मानी ने वाराणसी में काम करना शुरु किया।गुलाम हुसेन ने लाहौर की जिम्मेदारी ली और एक कम्युनिस्ट ग्रुप बनाया तथा उर्दू में इंकलाब नाम का अखबार भी निकालना आरम्भ किया।मुजफ्फर अहमद ने बंगाल में काम शुरु किया ।वहाँ से गणवाणी अखबार निकलने लगा।मद्रास में यह जिम्मेदारी सिंगारवेलु चेट्टियार के कंधो पर डाली गयी।वहाँ से लेवर-किसान गजट नामक अखबार निकलने लगा।

         1921के कांग्रेस के गया अधिवेशन, और 1922के अहमदाबाद अधिवेशन में इसी कम्युनिस्ट ग्रुप के लोगों ने सर्वप्रथम भारत की पूर्ण आजादी की बात प्रस्ताव के रुप में उठाई थी।इस प्रस्ताव से कांग्रेस और गांधीजी सहमत न थे।वह तो इग्लैंड की डोमिनिक स्टेट के रुप में ही काम करने के इच्छुक 1928 -29 तक बने रहे।

           हालांकि कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना को लेकर भी मतभेद कायम है।आज भी सी.पी.आई.इसे सितंबर 1924 मानती है।इसके पीछे उनके अपने तर्क भी हैं।वह अपने को कानपुर के 1924 के स्थापना से जोड़ती है।जहाँ तक एक वास्तविक कम्युनिस्ट पार्टी की बात आती है, विधिवत यह 1933-34में ही आरम्भ हो सकी जब कम्युनिस्ट पार्टी ने पहली बार अपना कोई कार्यक्रम जनता के सामने रखा।प्लेटफार्म आफ ऐक्शन केनाम से यह कार्यक्रम बना था।

          फिर हम 1920 ,के 17अक्टूबर के तासकंद में बने कम्युनिस्ट ग्रुप को क्या कहेंगे?31अक्टूबर 1920 ,को भारत में एटक की भी स्थापना हो गयी।इसके पीछे भी कम्युनिस्ट ग्रुप ही काम कर रहा था।1921 में पूर्ण स्वराज्य की बात उठाने वाले उन कामरेड्स को आप क्या कहेंगे, पेशावर षडयन्त्र केस 1922-24 में मोहम्मद सफीक समेत आधा दर्जन से अधिक लोग सरकार के खिलाफ षडयन्त्र करने में गिरफ्तार हुए , उन्हें हम क्या कम्युनिस्ट नहीं स्वीकार करेंगे?यह ऐसे सवाल हैं जो फिर हमारा पीछा नहीं छोड़ते।इसीलिए भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी यह मानती है कि वह भले ही एक छोटा सा ग्रुप ही था जिसने तासकंद में हिंदुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की,पर वह भारत की ही कम्युनिस्ट पार्टी रही और वहीं पार्टी की स्थापना की एक्चुअल तिथि भी है।

     साथियों ,1920 के अक्टूबर में जब कम्युनिस्ट ग्रुप भारत के लिए एक पार्टी फार्म कर रहा था तब जो परिस्थितियां थी,कमोवेश वैसी ही स्थितियां पुनः हमारे सामने आज सर उठा रही हैं।अंग्रेज नहीं तो उनके मुखविर आज सत्ता पर काबिज हैं तथा उसी पुराने सामंती-पूजीवादी युग की ओर देश को ले जाने की जीतोड़ चेष्टा कर रहे हैं।ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है।हमें आज स्थापना दिवस के अवसर पर फिर से संकल्प लेने की जरूरत है कि हम किसी भी तूफान से न डरने वाले अपने मकसद को पाकर ही दम लेंगे।सत्ता की किसी ऐसी नापाक हरकत को हम कामयाब नहीं होने देंगे जो शोषणपरक व्यवस्था की पैरोकार हो।इंकलाब-जिंदाबाद।

                                   ...................क्रमशः।