5,मई 1818 को 664 ब्रुस्केन गास्से मार्ग,जनपद त्रियेर,प्रशा में,हेनरिख मार्क्स और हेनरियेट प्रेस्बोर्क (दोनों पिता और मां)के घर कार्ल मार्क्स का जन्म हुआ।वह 14 मार्च 1883 को इस धरती को अलविदा कह गये। मार्क्स ने अपने जीवनकाल में,हेगल के दर्शन की समीक्षा,1841,कम्युनिस्ट घोषणा पत्र1848,पूंजी खण्ड-1,16,अगस्त,1867और क्रमशः दूसरे व तीसरे खण्ड की रचना की।1878में उनकी कृति ड्यूहरिंग मत खण्डन आयी।परिवार,निजी सम्पत्ति और राज्य उनकी अन्तिम रचना थी जिसका प्रकाशन उनके जाने के बाद 1884 में हुआ।कई रचनाए उन्होंने लिखी जिसमें उनके अपने और का.एंगिल्स के विचार भी हैं।
उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक पूंजी ने दुनियां के पूंजीपतियों को भीतर से भयभीत कर दिया और पेरिस कम्यून जो एंगेल्स के साथ आयी ने कम्युनिस्ट जगत को सावधान किया।
मार्क्स ने स्वयं अपने दृष्टिकोण को जड़सूत्र की तरह पेश करने की अनुमति नहीं दी है।यह एक संक्रमणकारी दर्शन है जो विभिन्न देशों की उनकी अपनी परिस्थितियों में प्रयुक्त होगा।सिद्धांत और व्यवहार का एक कठिन समन्वयकारी मार्ग ही हमें लेकर चलना है , की सीख भी उन्होने दी।जब हम सिद्धांत पर अधिक बल देते हैं तब संकीर्णता के शिकार और जब व्यवहारवाद पर बल देते हैं तो संशोधनवाद के भटकावों के शिकार हो जाते है।
कार्ल मार्क्स ने समाज के इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या करते हुए उसके क्रमिक विकास की रूपरेखा ऐतिहासिक भौतिकवाद में की जो एंगेल्स के साथ आयी।प्रकृति के भीतरी द्वंद और उनके बीच के संघर्स को विकसित करते हुए उन्होंने समाज के भीतर स्थित द्वन्द को भी रेखांकित किया।सामाजिक व्यवस्था में क्रांतियां उसी छाया में घटित होती गयी।
क्रमशः आदिम साम्यवाद से दास युग,भूदास, कुलीनतंत्र और राजतंत्र,सामंतवाद फिर पूंजीवादी व्यवस्था का वर्णन एक अनोखा दर्शन है।पूंजीवाद के गर्भ से ही समाजवाद का जन्म होता है जो आगे समाज को साम्यवाद के चरण में प्रवेश कराता है।यह ही अंतिम अवस्था होगी जब मानवों के मध्य के संघर्ष शून्य हो जायेंगे।हमारा संघर्ष सीधे प्रकृति से होगा।
द्वंदवाद में नये -पुराने के बीच के संघर्ष ,संसार का अंतः सम्बनध,विपरीतों की एकता का नियम,अंतर्विरोधों का नियम,मुख्य और गौड़ अंतर्विरोध,निषेध का निषेध,समाज में मात्रात्मक परिवर्तन और फिर गुणात्मक परिवर्तन का बोध हमें कार्ल मार्क्स के दर्शन से ही प्राप्त हुआ।समूचा विश्व ऐसे महामनीसी का अनंतकाल तक आभारी रहेगा।
हम आज उनके जन्मदिवस पर उन्हें सादर अपना क्रांतिकारी लाल सलाम पेश करते हुए उनके आदर्शो को अपने जीवन के प्रमुख कार्यों में प्रथम स्थान पर रखकर चलने का संकल्प लेते हैं।
उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक पूंजी ने दुनियां के पूंजीपतियों को भीतर से भयभीत कर दिया और पेरिस कम्यून जो एंगेल्स के साथ आयी ने कम्युनिस्ट जगत को सावधान किया।
मार्क्स ने स्वयं अपने दृष्टिकोण को जड़सूत्र की तरह पेश करने की अनुमति नहीं दी है।यह एक संक्रमणकारी दर्शन है जो विभिन्न देशों की उनकी अपनी परिस्थितियों में प्रयुक्त होगा।सिद्धांत और व्यवहार का एक कठिन समन्वयकारी मार्ग ही हमें लेकर चलना है , की सीख भी उन्होने दी।जब हम सिद्धांत पर अधिक बल देते हैं तब संकीर्णता के शिकार और जब व्यवहारवाद पर बल देते हैं तो संशोधनवाद के भटकावों के शिकार हो जाते है।
कार्ल मार्क्स ने समाज के इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या करते हुए उसके क्रमिक विकास की रूपरेखा ऐतिहासिक भौतिकवाद में की जो एंगेल्स के साथ आयी।प्रकृति के भीतरी द्वंद और उनके बीच के संघर्स को विकसित करते हुए उन्होंने समाज के भीतर स्थित द्वन्द को भी रेखांकित किया।सामाजिक व्यवस्था में क्रांतियां उसी छाया में घटित होती गयी।
क्रमशः आदिम साम्यवाद से दास युग,भूदास, कुलीनतंत्र और राजतंत्र,सामंतवाद फिर पूंजीवादी व्यवस्था का वर्णन एक अनोखा दर्शन है।पूंजीवाद के गर्भ से ही समाजवाद का जन्म होता है जो आगे समाज को साम्यवाद के चरण में प्रवेश कराता है।यह ही अंतिम अवस्था होगी जब मानवों के मध्य के संघर्ष शून्य हो जायेंगे।हमारा संघर्ष सीधे प्रकृति से होगा।
द्वंदवाद में नये -पुराने के बीच के संघर्ष ,संसार का अंतः सम्बनध,विपरीतों की एकता का नियम,अंतर्विरोधों का नियम,मुख्य और गौड़ अंतर्विरोध,निषेध का निषेध,समाज में मात्रात्मक परिवर्तन और फिर गुणात्मक परिवर्तन का बोध हमें कार्ल मार्क्स के दर्शन से ही प्राप्त हुआ।समूचा विश्व ऐसे महामनीसी का अनंतकाल तक आभारी रहेगा।
हम आज उनके जन्मदिवस पर उन्हें सादर अपना क्रांतिकारी लाल सलाम पेश करते हुए उनके आदर्शो को अपने जीवन के प्रमुख कार्यों में प्रथम स्थान पर रखकर चलने का संकल्प लेते हैं।
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