साम्यवाद के जन्मदाता #कार्ल_मार्क्स अपना अमर ग्रंथ ‘#दास_कैपिटल‘ लिखने में तल्लीन थे. इस कार्य के लिए उन्हें पूरा समय पुस्तकालयों से नोट वगैरह लेने में लगाना पड़ता था. ऐसे में परिवार का निर्वाह उनके लिए एक बड़ी परेशानी बन गया. उन्हें बच्चे भी पालने थे और अध्ययन सामग्री भी जुटानी थी. दोनों ही कार्यों के लिए उन्हें पैसा चाहिए था. इन विकट स्थितियों में मार्क्स की पत्नी आगे आई.
उन्होंने पैसों की समस्या से निपटने के लिए एक गृह उद्योग शुरू किया. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस गृह उद्योग के लिये वो कबाडि़यों की दुकानों से पुराने कोट खरीदकर लाती और उन्हें काटकर बच्चों के लिए छोटे-छोटे कपड़े बनाती. इन कपड़ों को वे एक टोकरी में रख मोहल्ले में घूम बेच आती. आज शायद यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मार्क्स की पत्नी की इसी कर्मठता के कारण ही उन्हें ‘दास कैपिटल‘ जैसा ग्रंथ पढ़ने को मिला.
महान दार्शनिक और राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रणेता कार्ल मार्क्स को जीवनपर्यंत घोर अभाव में जीना पड़ा. परिवार में सदैव आर्थिक संकट रहता था और चिकित्सा के अभाव में उनकी कई संतानें काल-कवलित हो गई. जेनी वास्तविक अर्थों में कार्ल मार्क्स की जीवनसंगिनी थी और उन्होंने अपने पति के आदर्शों और युगांतरकारी प्रयासों की सफलता के लिए स्वेच्छा से गरीबी और दरिद्रता में जीना पसंद किया.
जर्मनी से निर्वासित हो जाने के बाद मार्क्स लन्दन में आ बसे. लन्दन के जीवन का वर्णन जेनी ने इस प्रकार किया है – “मैंने फ्रेंकफर्ट जाकर चांदी के बर्तन गिरवी रख दिए और कोलोन में फर्नीचर बेच दिया. लन्दन के मंहगे जीवन में हमारी सारी जमापूँजी जल्द ही समाप्त हो गई. सबसे छोटा बच्चा जन्म से ही बहुत बीमार था. मैं स्वयं एक दिन छाती और पीठ के दर्द से पीड़ित होकर बैठी थी कि मकान मालकिन किराये के बकाया पाँच पौंड मांगने आ गई. उस समय हमारे पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था. वह अपने साथ दो सिपाहियों को लेकर आई थी. उन्होंने हमारी चारपाई, कपड़े, बिछौने, दो छोटे बच्चों के पालने, और दोनों लड़कियों के खिलौने तक कुर्क कर लिए. सर्दी से ठिठुर रहे बच्चों को लेकर मैं कठोर फर्श पर पड़ी हुई थी. दूसरे दिन हमें घर से निकाल दिया गया. उस समय पानी बरस रहा था और बेहद ठण्ड थी. पूरे वातावरण में मनहूसियत छाई हुई थी.”
ऐसे में ही दवावाले, राशनवाले, और दूधवाला अपना-अपना बिल लेकर उनके सामने खड़े हो गए. मार्क्स परिवार ने बिस्तर आदि बेचकर उनके बिल चुकाए.
ऐसे कष्टों और मुसीबतों से भी जेनी की हिम्मत नहीं टूटी. वे बराबर अपने पति को ढाढस बांधती थीं कि वे धीरज न खोयें.
कार्ल मार्क्स के प्रयासों की सफलता में जेनी का अकथनीय योगदान था. वे अपने पति से हमेशा यह कहा करती थीं – “दुनिया में सिर्फ़ हम लोग ही कष्ट नहीं झेल रहे हैं.”
मित्रों, जेनी ने बहुत मेहनत की, दरिद्र जैसी जिन्दगी जी, फिर भी कार्ल मार्क्स का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया. जेनी की पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत ही शानदार थी. जेनी प्रशिया के अभिजात वर्ग के एक प्रमुख परिवार Salzwedel में पैदा हुई थी.
जेनी की पारिवारिक पृष्ठभूमि
नाम जोहन्ना बर्था जूली जेनी वॉन Westphalen
जन्म 12 फ़रवरी 1814
मृत्यु 2 दिसंबर, 1881
पिता लुडविग वॉन Westphalen (1770-1842), Salzwedel में और ट्रायर में “Regierungsrat”(सर्वोच्च अधिकारी) के रूप में कार्य करते थे.
मित्रों, इतिहास ऐसे गुमनाम सितारों से भरा हुआ है. इतिहास गवाह है, हर कामयाब पुरुष के पीछे उसकी पत्नी की बहुत बड़ी भूमिका रही है. जेनी की महानता इस तथ्य को साबित करती है.
बहुत ही बढिया पोस्ट
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