Saturday, August 15, 2020

जस्टिस क्रष्णा अय्यर

 सुप्रीम कोर्ट का वह जज जिसे कभी भारत सरकार ने जेल में डाला था|


राज्यों के पुनर्गठन अधिनियम 1956 के द्वारा भारत की आंतरिक सीमाओं में काफी बदलाव आए और भाषा के आधार पर राज्यों की सीमाएं बनी|  


जिसे आज हम केरल राज्य के नाम से जानते हैं वह 1 नवंबर 1956 को अस्तित्व में आया| 


इसके एक साल बाद 1957 में भारत की पहली चुनी हुई वामपंथी सरकार अस्तित्व में आई| यह शायद दुनिया की दूसरी चुनी हुइ वामपंथी सरकार थी| इसके मुख्य मंत्री ईएमएस नम्बूदरीपाद थे| 


यह सरकार दो साल के अंदर ही बर्खास्त कर दी गई थी| 


इस सरकार के कारण एक नाम सामने आया वह नाम था वीआर कृष्णा अय्यर का जो इस सरकार में कानून गृह सिंचाई जेल और समाज कल्याण मंत्री रहे|


एक जज के रूप में कृष्णा अय्यर को भारत की न्याय व्यवस्था का भारतीय करण करने के लिए जाना जाता है जो आजादी के बाद अपने शुरुआती सालों में उपनिवेशी परम्परा से चल रही थी| 


कृष्णा अय्यर के फैसले आम आदमी को समझ में आने वाले होते थे हांलाकि कई बार उनकी भाषा ऐसी होती थी कि शब्दकोश की मदद लेनी पड़ती थी| 


चीफ जस्टिस सीकरी ने माना कि उनकी भाषा कई बार हम नहीं समझ पाते थे| 


जस्टिस कृष्णा अय्यर ने 'भारत के सर्वोच्च न्यायलय' को 'भारतीयों के लिए सर्वोच्च न्यायालय' बनाया था|


वे न्याय के लिए जोश से संघर्ष करने वाले इंसान थे और वे मानते थे कि बिना डरे न्याय देना हमारे संविधान की विशेषता है| 


जस्टिस कृष्णा अय्यर का एक आपराधिक और राजनैतिक इतिहास था जो किसी और जज का नहीं रहा|


कृष्णा अय्यर का जन्म 1915 को केरल के पलक्काड़ जिले के पालघाट में हुआ था| उनके पिता एक नामी वकील थे| 


अपनी कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद कृष्णा अय्यर 1938 में  मालाबार की अदालत में वकालत करने लगे| पिता पुत्र के मुवक्किलों में उद्योगपति जमींदार से लेकर गरीब किसान तक होते थे| 


कुछ समय में बेटे को लगने लगा कि वह अपनी आदर्शवादी सोच की  वजह से बेसहारा और कुचले हुए लोगों की तरफ खिंच रहा है| वह अमीर मुवक्किलों से मिले पैसे से गरीब लोगों के मुकदमें मुफ्त में लड़ने लगे|


केरल उस समय एक उथल पुथल का सामना कर रहा था| त्रावनकोर की रियासत आजाद हो  कर अमेरिका जैसा देश बनना चाह रही थी| लेकिन उस इलाके में मौजूद वामपंथियों को यह विचार पसंद नहीं आ रहा था| 


इलाके में फैले अकाल की वजह से किसान बड़ी संख्या में कम्युनिस्टों के साथ जुड़ते जा रहे थे| बार बार दंगे भड़क जाते थे| एक बार तो कम्युनिस्टों ने वहाँ अपनी सरकार भी घोषित कर दी थी हांलाकि त्रावनकोर की सेना ने इसे निर्दयता से कुचल दिया था|


18 जुलाई 1947 को त्रावनकोर के महाराजा ने एक शाही फरमान निकाला और त्रावनकोर को एक आजाद देश घोषित कर दिया| 25 जुलाई को शाही दीवान की जान पर हमला किया गया| 30 जुलाई को महाराजा ने माउन्टबेटन को पत्र लिख कर भारत संघ में शामिल होने की संधि पर दस्तखत करने के लिए अपनी सहमती भेज दी| 


1949 में त्रावनकोर भारत में शामिल हो गया| इसके बाद केरल में कम्युनिस्ट आन्दोलन मजबूत होता चला गया|


गरीबों के लिए काम करने वाले कृष्णा अय्यर इस सब से अलग नहीं रह पाए| मजदूरों का संघर्ष किसानों की लड़ाई इसके नेताओं की गिरफ्तारी इन आंदोलनों पर सरकारी कार्यवाही और आपराधिक प्रक्रिया चल रही थी| 


कृष्णा अय्यर इस सब के केंद्र में आ गये| वे किसान और मजदूर नेताओं के मुकदमें लड़ने लगे| कई बार हथियारबंद किसान नेताओं के मुकदमें भी वह बिना पैसा लिए लड़ते थे| 


वे अपने उन दिनों को याद करके कहते हैं कि मैं बिना किसी पार्टी का सदस्य बने एक नेता बन गया था| कम्युनिस्ट गांधीवादी और कांग्रेसी नेता कृष्णा अय्यर से मिलने आते थे| साल दर साल उनके काम ने उन्हें कम्युनिस्ट किसान और मजदूर नेताओं के मुकदमें लड़ने वाले के रूप में मशहूर कर दिया| 


वे ऐसे संवेदनशील मुकदमें भी लड़ते थे जिनमें हत्या और दंगे के आरोपी भी होते थे| वे कई बार जजों के ऊपर मजाकिया व्यंग भी कर देते थे| उनके साथियों ने और कई बार जजों तक ने उन्हें समझाया कि कि इस तरह कम्युनिस्टों के लिए अदालत में खड़े होकर अपना भविष्य बर्बाद मत करो|


लेकिन कृष्णा अय्यर ने इन बातों को सुना नहीं और वे अपनी न्याय की लड़ाई में लगे रहे| उन्होंने एक कानूनी सहायता सेवा भी शुरू करी जिसमें दस वकील मजदूरों और किसानों को कानूनी सहायता देते थे| 


मई 1948 को कृष्णा अय्यर को गिरफ्तार कर लिया गया| उन पर हिंसक कम्युनिस्टों की मदद करने और उन्हें छिपने की जगह देने का अरोप लगाया गया| 


उन पर सबसे मजेदार आरोप यह लगा कि उन्होंने अदालत को राजनैतिक प्रचार के लिए इस्तेमाल किया है| हांलाकि पुलिस अदालत में अपने आरोप साबित नहीं कर पायी और एक महीने की जेल के बाद कृष्णा अय्यर बरी हो गये| 


लेकिन जेल के अपने इस अनुभव को वह कभी नहीं भुला पाये| 


वे बताते हैं; आप हवालात में बैठे हैं और बीच में सलाखें हैं जो आपको दुनिया से अलग करती हैं| और जब आपके दोस्त आपसे मिलने आते हैं तो वो आपको ऐसे देखते हैं जैसे चिड़ियाघर में बंद जानवर को देखते हैं| 


आपको शौच और पेशाब उसी कोठरी में करना होता है| और उस दौरान कोई आड़ नहीं होती पूरे समय पुलिस वाला आपको देखता रहता है| जैसे कि सलाखों के पीछे से आप जादू से गायब हो जायेंगे|     


वहां से उन्हें कन्नूर केन्द्रीय जेल ले जाया गया लेकिन वहाँ भी हालत वही थी| 


वह बताते हैं यहाँ भी भी ज़िन्दगी बहुत दयनीय थी| एक सीमेंट का फर्श था जिस पर आपको लेटना होता है| नीचे से कीड़े काटते हैं और ऊपर से मच्छरों का हमला होता है| यहाँ कोई प्राइवेसी नहीं होती सम्मान का कोई वजूद नहीं होता और अच्छे जीवन के लिए हालात असंभव हैं|


30 दिन की जेल की कैद ने उन्हें जो अनुभव दिया जिसका उन्होंने अपने बाद के जीवन में बहुत इस्तेमाल किया| उनके चार्ल्स शोभराज और सुनील बत्रा मामले में दिए गये फैसले में कैदियों के इंसानी गरिमा और सम्मान के मुद्दे पर महत्वपूर्ण फैसला है|  


एक बार सुप्रीम कोर्ट के जज चेल्मेश्वर राव ने कहा था कि कृष्णा अय्यर ने ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव देखे थे उसने उन्हें वह बनाया जो वह थे, आज के दिन तक वह अकेले सुप्रीम कोर्ट के जज हैं जिन्हें आजादी के बाद सरकार ने जेल में डाला था|


1952 में वे विधान सभा का चुनाव लड़े, उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में परचा भरा लेकिन उन्हें कम्युनिस्टों और इंडियन मुस्लिम लीग का समर्थन मिला था| उनके द्वारा लगातार सरकार को उनकी कमियाँ बताने का काम किया गया| वे संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों की बात करते थे| अब कृष्णा अय्यर एक समाज सुधारक और प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में प्रसिद्ध हो गये| 


केरल राज्य 1956 में बना| कृष्णा अय्यर फिर से चुनाव लड़े| इसी चुनाव में ईएमएस नम्बूदरीपाद चुनाव जीते और भारत की पहली चुनी हुई सरकार बनी| हांलाकि कृष्णा अय्यर कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य नहीं थे फिर भी गरीबों के लिए किये गये उनके कामों और मद्रास विधान सभा में उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें मंत्री बनाया गया| 


मंत्री के रूप में उन्होंने बहुत से ऐतिहासिक काम किये| केरल का भूमि सुधार जिसमें भूमि का मालिक जमीन जोतने वाले को बनाया गया था| जल संसाधनों को लेकर जो पहला मास्टर प्लान बना उसका श्रेय भी उन्हें ही जाता है| एक मंत्री के रूप में वह अपने जेल के दिनों को नहीं भूले| उन्होंने वे जीवन भर जेल सुधारों का काम करते रहे|


जब ईएमएस नम्बूदरीपाद ने घोषणा करी कि पुलिस का यह काम नहीं है कि वह किसी राजनैतिक पार्टी द्वारा किसानों या मजदूरों के आन्दोलन या उसके एक्टिविस्ट को दबाएँ, कृष्णा अय्यर ने इसका समर्थन किया और नई पुलिस पालिसी बनाई|


कानून मंत्री के रूप में न्याय पालिका में सुधार के लिए उन्होंने दस दिन ज्यादा बैठने का नियम बनाया ताकि पुराने मामले निपटाए जा सकें|

उन्होंने दहेज़ के खिलाफ कानून बनाया जो केन्द्रीय कानून से ज्यादा असरदार था इसके अलावा उन्होंने गरीबों को कर्ज से मुक्ति के लिए भी कानून बनाया| 


न्याय के लिए उनकी कोशिश इतनी गहरी थी कि वे जाति धर्म आर्थिक वर्ग और राजनैतिक रिश्तों के सभी भेदों को भूल कर सिर्फ न्याय के लिए अपनी जद्दोजहद में लगे रहते थे| 


ईएमएस नम्बूदरीपाद की सरकार को 1959 में बर्खास्त कर दिया गया| कृष्णा अय्यर 1960 का चुनाव लड़े| और सात वोटों से हारे बाद में अदालती फैसले के बाद वह विधान सभा में पहुंचे| 


1965 के चुनाव में वह हार गये और उन्हें फिर से अपने वकालत के पेशे में आने का मौका मिला| 


1968 में 52 साल की उम्र में उन्हें सीपीआइ(एम) की सरकार के समय केरल हाई कोर्ट का जज बनाया गया| वे तीन साल हाई कोर्ट की बेंच में रहे 1971 में उन्हें गजेन्द्र गडकर ला कमीशन में एक छोटे से कार्यकाल के लिए दिल्ली बुलाया गया| 


1973 में उनका सुप्रीम कोर्ट जाने का का समय हो गया था| लेकिन मुख्य न्यायधीश सीकरी और बम्बई बार का एक हिस्सा उनके राजनैतिक अतीत के कारण उनकी नियुक्ति का विरोध कर रहा था| यहाँ तक कि पूर्व सौलीसिटर जनरल सोली सोराबजी ने स्वीकार किया कि उन्होंने कृष्णा अय्यर की नियुक्ति का विरोध किया था लेकिन बाद में उनका काम देख कर वे उनके प्रशंसक बन गये| 


जस्टिस कृष्णा अय्यर पिछड़े लोगों के लिए न्याय के एक एक्टिविस्ट थे| अक्सर वे कानून को कमजोरों के पक्ष में घुमा देते थे| 


कृष्णा अय्यर कहते थे कि संविधान एक सामाजिक और आर्थिक न्याय का दर्शन है लेकिन अक्सर जज अपने सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के कारण उसे देख नहीं पाते| जस्टिस कृष्णा अय्यर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट मुख्यतः ब्राह्मण और उच्च जातियों का है और उसका असर इसके फैसलों पर पड़ता है| 


जस्टिस कृष्णा अय्यर 14 नवम्बर 1980 को रिटायर हो गये और किसी दूसरी नियुक्ति के लालच में पड़े बिना सीधे केरल चले गये| वे पत्र पत्रिकाओं में लिखते रहे| लोगों का मानना था कि रिटायरमेंट ने उन्हें बेड़ियों से आजाद कर दिया है और वे अब लोगों के हकों के लिए अपना काम बेहतर कर पा रहे हैं|



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